शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

हिंदी बरकरार रखने के लिये

हिंदी बरकरार रखने के लिये 
१९९७ मे कभी     
बिना तंत्रज्ञान विकास के कोई देश, समाज या भाषा आगे नहीं आ सकते। हिंदी बरकरार रखने के लिये भी संगणक का माध्यम अत्यावश्यक है।
        सरकारी कार्यालयों में नई पीढ़ी पूर्णतया संगणक प्रशिक्षित है और संगणक सुविधाओं का लाभ भी ले रही है। लेकिन केवल अंग्रेजी के माध्यम से। हिंदी माध्यम से अत्यल्प जुड़ाव है।
        कारण यह कि संगणक सुविधाएँ हिंदी में एक प्रतिशत भी विकसित नही हैं।
        इसका कारण यह कि हिंदी में संगणक सुविधा का विकास केवल सॉफ्टवेयर तक सामित रहा हैं जब कि पूरे विकास के लिये सॉफ्टवेयर को ऑपरेटिंग सिस्टम (ओ. एस्‌.) के साथ इंटिग्रेट करना आवश्यक होता है।
        हिंदी संगणक विकास करने वालों में  में सर्वप्रमुख है सीडैक जो सरकारी संस्था होने के कारण उसे संसाधनों की कोई कमी नहीं हैं।
        सीडैक ने कई अच्छे संगणक सॉफ्टवेयर्स विकसित किये हैं लेकिन वे कस्टमर की आकांक्षा पर पचास प्रतिशत से अधिक खरे नहीं उतरते क्योंकि उन्हें ओएस से इंटिग्रेट नहीं किया गया है। और न ही कस्टमर के प्रश्नों का समाधान ढूँढने का प्रयास हुआ है।
        सीडॅक या अन्य विकासक के दावे को कबूलते हुए भारी खर्च पर सरकार ने हिंदी के सॉफ्टवेयर खरीद लिये है लेकिन उनकी उपयोगिता परखने का या बढ़ाने का कोई कार्यक्रम सरकार के पास नहीं है। उदाहरण स्वरुप देखें अनुलग्नक - १।
        सीडॅक के सभी सॉफ्टवेयर महंगे बना दिये गये हैं जिससे उनके खरीदार या तो नहीं के बराबर हैं या ऐसे सरकारी कार्यालय हैं जहाँ पैसे का व्यय न तो महत्व रखता है ना कोई इस पर सवाल उठाता है। कदाचित जो सवाल उठाये जाते हैं उन्हें राजभाषा या सीडॅक से कोई उत्तर या समाधान नहीं दिया जाता।
        आधे अधूरे उपयोग वाले सॉफ्टवेयर को कार्यालय में लगाकर उनका आग्रह करने से समय का अपव्यय होता है क्योंकि सरकारी काम व टिप्पणियाँ दीर्घकालीन और विभिन्न उपयोगों के लिये होती हैं। ऐसे में हिंदी सॉफ्टवेयर के साथ किये गए काम को बार बार करना पड़ता है।

उपाय
यह जाँचा जाए कि जिन सरकारी कार्यालयों में हिंदी सॉफ्टवेयर लगे उनमें से कितनों के लिये कंज्यूमर रिस्पान्स माँगा गया या उनकी दिक्कतों को समझा गया और उसमें से कितनों को सुधारा गया।
        पहले बायोस और ओएस दोनों को थ््रदृड्डत्ढन््र किये बगैर ओएस को विकसित करना संभव नहीं था एत्दृद्म और ग््रच् त्दद्यड्ढढ़द्धठ्ठथ् थे। वैसी हालत में एत्दृद्म के बगैर हिंदी ग््रच् बनाना बेमानी था और एत्दृद्म थ््रदृड्डत्ढत्ड़ठ्ठद्यत्दृद में कई व्यवहारिक दिक्कतें थीं। अब एत्दृद्म को संस्कारित किये बगैर को ग््रच् बदला जा सकता है।

        लेकिन वर्तमान में ग््रच् ड्डड्ढध्ड्ढथ्दृद्रथ््रड्ढदद्य बड़ी द्मड़ठ्ठथ्ड्ढ की प्रक्रिया बन गई है। अतएव भारत में सरकारी कार्यालयों के अनुकूल दो ग््रच् हैं - ग्च् तथा ख््रत्दद्वन्.सीडैक अभी तक ग्च् पर आधारित है। इसमें थ्त्दद्वन् आधारित करने पर फायदेमंद रहेगा क्योंकि -
        (ठ्ठ) ख््रत्दद्वन् एक दृद्रड्ढद द्मन््रद्मद्यड्ढथ््र हैं। इसमें होने वाले हर बदलाव को तथा हर त्थ््रद्रद्धदृध्ड्ढथ््रड्ढदद्य को घ्द्वडथ्त्ड़ क़्दृथ््रठ्ठत्द में रखा जाता है ताकि उपभोक्ता इसमें अपनी आवश्यकतानुसार अगला ड्डड्ढध्ड्ढथ्दृद्रथ््रड्ढदद्य
कर सके। ऐसा नया ड्डड्ढध्ड्ढथ्दृद्रथ््रड्ढदद्य भी द्रद्वडथ्त्ड़ ड्डदृथ््रठ्ठत्द में रखा जाता है। इस प्रकार उपभोक्ताओं के परामर्श और द्रठ्ठद्धद्यत्ड़त्द्रठ्ठद्यत्दृद से ही ख््रत्दद्वन् द्मन््रद्मद्यड्ढथ््र विकसित हुई है। सीडॅक ने अपनी त्दध्ड्ढद्मद्यथ््रड्ढदद्य का हवाला देकर ख््रत्दद्वन् को इसलिये ठुकराया है कि घ्द्वडथ्त्ड़ क़्दृथ््रठ्ठत्द में  उनके सॉफ्टवेयर ढद्धड्ढड्ढ द्यदृ ठ्ठथ्थ् हो जायेंगे और उनका त्दड़दृथ््रड्ढ ढ़ड्ढदड्ढद्धठ्ठद्यत्दृद रूक जायेगा।

सरकार को यह नीति तय करनी चाहिए कि चूँकि सीडैक एक सरकारी संस्था है अतः त्दड़दृथ््रड्ढ ढ़ड्ढदड्ढद्धठ्ठद्यत्दृद  की परवाह किये बगैर उनके द्मदृढद्यध््रठ्ठद्धड्ढ को द्रद्वडथ्त्ड़ ड्डदृथ््रठ्ठत्द में डाला जाय।
        वर्तमान में संगणक शिक्षा के बिना शिक्षा भी अधूरी है। ऐसी हालत में चीन और भारत के ये आकड़े क्या कहते हैं -
                                        चीन                         भारत
थ्त्द्यड्ढद्धठ्ठड़न््र                                ७५ऽ                        ६५ऽ
अंग्रेजी जानने वाले                     १०ऽ                        ४०ऽ
संगणक पर काम करने वाले             ७०ऽ                        २५ऽ

इन आकड़ों में शायद थोड़ा परिवर्तन हो लेकिन ये द्यद्धड्ढदड्ड दर्शाते हैं और बताते हैं' कि भारत में संगणक को अग्रेंजी आधारित रखने के कारण एक ओर शिक्षित व्यक्ति भी अग्रेंजी न जाने तो संगणक ज्ञान से वंचित रहेगा। दूसरी ओर जितना ही वह संगणक के करीब जायगा उतना ही उसे हिंदी या अपनी मातृभाषा से दूर रहना पड़ेगा। लेकिन चीन में संगणक चीनी भाषा पर आधरित हैं जिस कारण से अंग्रेजी न जानने पर भी उनकी भावी पीढ़ी आधुनिक ज्ञान को अपनी मातृभाषा के माध्यम से पा सकती हैं। यही कारण है कि चीन की उत्पादकता भारत की अपेक्षा कहीं अधिक है।
        सीडॅक द्वारा विकसित कतिपय सॉफ्टवेयरों की चर्चा यहाँ औचित्यपूर्ण हैं।
        पहला है थ्ड्ढठ्ठद्र दृढढत्ड़ड्ढ  - खासकर उसमें विकसित त्दद्मड़द्धत्द्रद्य त्त्ड्ढन््रडदृठ्ठद्धड्ड :-
        पूरी तरह भारतीय वर्णमाला पर आधारित और सभी भारतीय लिपियों में तथा वर्णाक्षरों की एकात्मता
बनाये रखने वाला यह  त्त्ड्ढन््र डदृठ्ठद्धड्ड निःसंदेह भारतीय भाषाओं लिये बने तमाम की बोर्डों से अधिक सहज सरल और ''बीस मिनट में फटाफट' सीखने के लिये सर्वोत्तम है। सभी भारतीय भाषाओं के लिये एक वर्णाक्षर एक ही कुंजी का द्रद्धत्दड़त्द्रथ्ड्ढ इसमें है और वह कुंजियाँ भी ऐसी ठ्ठद्धद्धठ्ठदढ़ड्ढड्ड की हैं जिन्हें समझना  बहुत ही आसान है। लेकिन आज त्दद्मड़द्धत्द्रद्य की बोर्ड और लीप प्रणाली की उपयोगिता केवल दस प्रतिशत है । आज इसकी कीमत है दस से पंद्रह हजार रूपये और कितनी गैरसरकारी संस्थाएँ इसे खरीदती हैं यह जानकारी ड्ढन््रड्ढ दृद्रड्ढदड्ढद्ध होगी।

इसमें स्थिति में सुधार के उपाय -
१.ठ्ठ) कीमत को दस हजार से घटाकर मुफ्त या पांच सौ तक लाया जाय।
१.ड) थ्ड्ढठ्ठद्र दृढढत्ड़ड्ढ के द्मठ्ठथ्ड्ढ ढत्ढ़द्वद्धड्ढद्म की जाँच की जाय ताकि दुनियां को पता चले कि वह कितना कम बिका है।
१.ड़) सरकार सीडॅक को एक मुश्त ड्डड्ढध्ड्ढथ्दृद्रथ््रड्ढदद्य ड़ण्ठ्ठदढ़ड्ढ देकर लीप ऑफिस प्रणाली खरीद ले और मुफ्त बांटे। इसके लिये किसी दृत्थ् ड़दृथ््रद्रठ्ठदन््र को भी कहा जा सकता है जिनका द्रद्धदृढत्द्य १०००० करोड़ रूपये के द्धठ्ठदढ़ड्ढ में होता है।
        यह सब करने पर उपयोगिता होगी पचास प्रतिशत।


इसके बजाय यदि इसे ख््रत्थ््रत्न् सिस्टम में घ्द्वडथ्त्ड़ क़्दृथ््रठ्ठत्द में डाला जाय चो इसकी उपयोगिता  होगी सौ प्रतिशत। सीडॅक द्वारा विकसित पॅकेज लीला जो अंग्रेजी से भारतीय भाषाओं में अनुवाद के लिये बना है। इसकी उपयोगिता दो तरह से जांचनी होगी -

ऋ.१ भारतीय भाषा से भारतीय भाषा के अनुवाद के लिये उपयोगिता ५ऽ
ऋ.२  भारतीय भाषा से अंग्रेजी अनुवाद के लिये १०ऽ
ए-१ अंग्रेजी से भारतीय भाषा में अनुवाद के लिए ५०ऽ
यहाँ केवल ए-१ की चर्चा प्रस्तुत है। सीडैक की ओर से कहा जाता है कि लीला के द्वारा शब्द से शब्द का नहीं बल्कि थ्ड्ढन्त्ड़ठ्ठथ् द्यद्धड्ढड्ढ से थ्ड्ढन्त्ड़ठ्ठथ् द्यद्धड्ढड्ढ अर्थात्‌ वाक्यांश से वाक्यांश का अनुवाद किया जाता है।
सबसे पहले तो सीडैक को बधाई देनी पडेगी कि जब संगणक की दुनियाँ में भारतीय भाषाओं के लिए अनुवाद जैसा कुछ भी नहीं था, तब उन्होंने यह पॅकेज विकसित किया। कम से कम पचास प्रतिशत काम तो इससे हो ही जायेंगे। खासकर आज जब अंग्रेजी में ऐसा पॅकेज आ गया है जिसकी मार्फत हाथ से लिखी गई अंग्रेजी इबारत को पढ़ और समझ कर संगणक उसे टाईप-रिटन अंग्रेजी में ड़दृदध्ड्ढद्धद्य कर रहा है। ऐसी अंग्रेजी इबारत से भारतीय भाषाओं में अनुवाद की संभावना के कारण बँकों को और सरकारी दफ्तरों की अंग्रेजी टिप्पणियों को बाद में हिंदी में उतार लेने की सुविधा उत्पन्न हो गई है। फिर भी उपयोगिता पचास प्रतिशत से अधिक नही है।
जब कि इसे आसानी से बढाया जा सकता है। तरीका फिर वही है। थ्ड्ढन्त्ड़ठ्ठथ् द्यद्धड्ढड्ढ द्यदृ थ्ड्ढन्त्ड़ठ्ठथ् द्यद्धड्ढड्ढ के अनुवाद के लिये जो भी ड़दृड्डत्दढ़ सीडैक ने की है असे यदि द्रद्वडथ्त्ड़ ड्डदृथ््रठ्ठत्द में डाला जाये और वह थ्त्दद्वन् ग््रच् में इस्तेमाल होने लगे तो जो भी व्यक्ति अलग तरह से अनुवाद करना चाहता हो वह इस ड़दृड्डत्दढ़ की मदद से ऐसा कर सकेगा। इस ड़दृड्डत्दढ़ से भारतीय भाषाएँ ठ्ठड़ड़ड्ढद्मद्मत्डथ्ड्ढ होंगी अतः कोई अन्य बुद्धिमान और संगणक-प्रवीण व्यक्ति भारतीय भाषा से भारतीय भाषा तक या भारतीय भाषा से सीधे जापानी, चीनी, फ्रांसिसी, जर्मन इत्यादि भाषाओं तक पहुँच सकेगा। इस प्रकार दुनियाँ के अन्य देशों तक पहुँचने के लिए त्दद्यड्ढद्धथ््रड्ढड्डत्ठ्ठद्धन््र थ्ठ्ठदढ़द्वठ्ठढ़ड्ढ के रूप में अंग्रेजी की आवश्यकता नही रहेगी। इससे विश्र्व बाजार में और विश्र्व राजनीति में भी भारत की साख बढेगी।
सारांश में चार मुद्दों पर सरकार को ठोस नीति और कार्यक्रम हाथ में लेने पडेंगे -
१) सीडैक द्वारा विकसित सॉफ्टवेयर मुफ्त उपलब्ध कराये जायें।
२)संगणक बेचने वाली कंपनियों पर निर्बंध हो कि वे भारतीय भाषा सॉफ्टवेयर के बगैर संगणक न बेचें।
३) सीडैक सहित पहले भी जितने डेव्हलपर्स ने हिंदी सॉफ्टवेयर बनाये और बेचे हैं और जो आज भी लोगों के संगणकों में बिना त्थ््रद्रद्धदृध्ड्ढथ््रड्ढदद्य की संभावना के पडे हुए हैं, उनकी ड़दृड्डत्दढ़ को दृद्रड्ढद करके द्रद्वडथ्त्ड़ ड्डदृथ््रठ्ठत्द में डाला जाये ताकि लोग थ्त्दद्वन् ग््रच् द्रथ्ठ्ठद्यढदृद्धथ््र के माध्यम से उनका उपयोग कर सकें। और एक तरह के हिंदी सॉफ्टवेयर में किया गया काम दूसरे सॉफ्टवेयर में भी काम आ सके। इस प्रकार पिठले दस - बीस वर्षों से लोगों का जमा किया ड्डठ्ठद्यठ्ठ बचाया जा सकता है।
४)राजभाषा विभाग सभी विभागों में हिंदी में होनेवाले कामकाज के विषय में संगणक संबंधित कठिनाइयों का ढड्ढड्ढड्ड डठ्ठड़त्त् लेता रहे और उन कठिनाइयों को निरस्त करने का प्रयास करे।
५)अंतर्राष्ट्रीय बाजार में आज भी देवनागरी वर्णमाला हर संगणक पर उपलब्ध नही है जबकि चायनीज और अरेबिक वर्णमालाएँ उपलब्ध हैं। इसका उत्तर और इलाज पाने के प्रयास हों।
६)ग्च् दृढढत्ड़ड्ढ के (१) कन्ड़ड्ढथ्  बनाना (३) घ्दृध््रड्ढद्ध द्रदृत्दद्य जैसे कार्यक्रम, (४) ई मेल और (५) वेब पेज बनाने के लिये सरल कार्यक्रम, (६) ऍक्रोबॅट रीडर जैसे कार्यक्रम के साथ हिंदी का इंटिग्रेशन, (७) ई मेल को डाऊन लोड करने के बाद उससे सीधे भारतीय लिपियों में वर्ड फाईल बनाना च्दृद्धद्यत्दढ़ अनुक्रम भारतीय वर्णमाला के अनुसार ये आठ कार्यक्रम जब तक सरलता से कार्यालयों में संपन्न नही हो पाते तब तक राजभाषा की प्रतिष्ठा के लिये जो भी किया जायेगा वह निष्फल रहेगा। (८) हिंदी में लिपिबद्ध पन्नों को चित्र या त्र्द्रड्ढढ़ ढत्थ्ड्ढ से पढ़कर उससे हिंदी लिपि में वर्ड फाईल बनाना।                                                    -------------------------------------------------------

रविवार, 3 जुलाई 2016

तेलुगु से देवनागरी
अक्षरमुख लिप्यंतरकारी के लिये व्हर्च्युअल विनोद टाइप करें।
http://www.virtualvinodh.com/wp/aksharamukha/
नव्य – १० 
कर्मयोगं अंटे? 
tगत रॆंडु व्यासाल्लो कर्म, दानि फलितंपै कोरिक लेकुंडा पनिचेयडं अने वाटि नेपथ्यं तॆलुसुकुन्नां. प्रस्तुतं कर्मयोगं अने दानिनि गूर्चि तॆलुसुकुंदां. 
tफलितंपै कोरिक लेकुंडा पनिचेयडानिकि (निष्कामकर्मकु) भगवद्गीतलो श्रीकृष्णुडु पॆट्टिन पेरु कर्मयोगं. योगं अंटे आसनालु वेयडं, गालि पील्चुकोवडं अनि साधारणंगा मनं अनुकुंटां. निजानिकि योगमंटे कलयिक. फलाना वाडिकि राजयोगं पट्टिंदि, लक्ष्मीयोगं पट्टिंदि अंटूंटां. लेनिदान्नि पॊंदडं, पॊंदिनदानिनि रक्षिंचुकोवडं योगमंटे. इक्कड कर्मयोगं अंटे कर्म अने उपायान्नि पट्टुकॊनि मरॊकदान्नि साधिंचडं. आ मरॊकटि एमंटे अदे आत्मज्ञानं. 
tनिष्कामकर्म वल्ल ऒक प्रयोजनान्निपै व्यासाल्लो चूशां. अदेमिटंटे कर्म यॊक्क फलितमैन पुण्यं लांटिवि लेकुंडटं, दानि पर्यवसानालु लेकुंडा चूडटं. मरॊक प्रयोजनं कूडा उंदि. फलितं कोरकुंडा पनि चेसे व्यक्ति मनस्सु क्रमक्रमंगा पवित्रंगा मारटं. दीन्ने चित्तशुद्धि अंटारु. ऎलांटि लाभापेक्ष लेकुंडा मंचिपनुलु चेस्तुन्नप्पुडु मनस्सु ऎंत प्रशांतत, संतृप्ति पॊंदुतुंदो मनं स्वंतंगा प्रयत्नं चेसि चूडवच्चु. कर्म मनस्सुनु शुभ्रपरचडानिकि ऒक शांडल् सोपु लांटिदनि चॆपुतारु. चित्तशुद्धि उन्न व्यक्तिये आत्मज्ञानं गुरिंचि आलोचन चेयगलडनि उपनिषत्तुल सिद्धांतं. 
tकर्मयोगं गूर्चि चॆबुतू श्रीकृष्णुडु ‘योगः कर्मसु कौशलं’ अंटाडु. ‘कर्मयोगं अंटे पनुलु चेयडंलो नेर्परितनं’ अंटाडु. एमिटि आ नेर्परितनं अंटे कर्मचेस्तू उंडि कूडा दानि फलितं नुंचि तप्पिंचुकोवडं. दॊंग दॊंगतनं चेसि तप्पिंचुकुन्नट्लु काकुंडा मंचि पनि चेसि कूडा दानि फलितमैन पुण्यान्नि कोरकपोवडं.. इदि आश्चर्यंगा कनिपिंचवच्चु. 
कर्मयोगि कानिवाडु स्वंत अभ्युदयं कोसं पनिचेस्तू पुट्टुक, मरणं अने चक्रंलो तिरुगुतूंटाडु. इतनिकि मोक्षं प्रस्तावन लेदु. अलाकाकुंडा कर्मयोगि लोकं मेलु कोसं ईश्वरार्पण बुद्धितो पनिचेस्तूंटाडु. ईश्वरार्पण अंटे तानु भगवंतुडि कास्मिक् प्लान् लो ऒक भागंगा, भगवंतुनि चेतिलो ऒक पनिमुट्टुगा भाविस्तू पनिचेयडं. दीनिवल्ल प्रयोजनं चित्तशुद्धि. चित्तशुद्धि उन्न मनस्सु परिशुभ्रमैन अद्दं वंटिदि. ऒक अद्दंलो एदैना वस्तुवु प्रतिबिंबं एर्पडालंटे अद्दं शुभ्रंगा उंडालि. अलागे आत्मज्ञानमने वॆलुगुनु प्रतिबिंबिंचालंटे मनस्सने अद्दं शुभ्रंगा उंडालनि वेदांतं चॆबुतुंदि. 
पनि चेयडमे दैव पूज. कृष्णुडु चॆप्पे मरॊक सूत्रमिदि. 
tप्रति मनिषिकी वाडि वाडि स्वभावान्नि बट्टि समाजं कॊन्नि कर्मल्नि विधिस्तुंदि. आ पनुल्नि चेयडमे देवुडिनि पूजिंचडं अनि गीत चॆबुतुंदि. ‘स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य’ अंटाडु श्रीकृष्णुडु.मनवंतु पनिनि श्रद्धगा चेस्ते सृष्टि नियमाल्नि, प्रपंचधर्मान्नि पाटिंचिनट्ले. इदे आ सृष्टिचक्रानिकी, प्रपंचधर्मानिकी कारणमैन शक्तिनिपूजिंचडं अंटे. पूर्वकालं नियमाल (work division) प्रकारं केवलं अध्ययनं, अध्यापनं, यागालु चेयिंचडं, दानं स्वीकरिंचडं मॊदलैनवि ब्राह्मणुडि धर्मं. प्रजल्नि रक्षिंचडं, धर्मान्नि रक्षिंचडं क्षत्रियुडि धर्मं. इलागे मिगतावारिकि कूडा. भगवद्गीतलो अर्जुनुडु तन धर्मान्नि वदिलि भिक्षाटनं अने ब्राह्मण धर्मान्नि पाटिस्तानंटाडु. आ समयंलो आ समयंलोअतनि धर्मान्नि गुर्तुचेयडमे श्रीकृष्णुडि पनि. 
tस्वधर्मान्नि गुरिंचि रामुडु कूडा चॆपुताडु. श्रीरामुडु सीततो पाटु अडवुलकु वॆळ्ळिन समयंलो अडवुल्लो उन्न ऋषुलु आयन्नु समीपिंचडं, राक्षसबाधनु तॊलगिंचमनि आयन्नु कोरडं, आयन वाळ्ळ वॆंबडि वॆळ्ळडं, वीटन्निंटिनी चूसि सीतकु ऒक संदेहं वस्तुंदि. ‘अय्या!मनं मी तंड्रिगारि माट पाटिंचडानिकि मात्रमे अडवुलकु वच्चां कदा? नीवु ऎप्पुडू नी शस्त्रालु पट्टुकुने उंटुन्नावु, राक्षसुलतो युद्धालु चेस्तुन्नावु? इवन्नी ऎंदुकु? ऎप्पुडू आयुधालु दग्गर पॆट्टुकोवडं वल्ल मनिषि बुद्धि कूडा कलुषितमवुतुंदि कदा?’ अंटुंदि. आयुधं चेतिलो उंटे अनवसरंगा अंदरिपै दानिनि प्रयोगिंचे मनस्तत्त्वं वस्तुंदि अंटू ऒक कथ कूडा चॆबुतुंदि. अप्पुडु रामुडु आमॆकु क्षत्रिय धर्मान्नि गूर्चि चॆबुतू कष्टाल्लो उन्नवारि कष्टाल्नि तॊलगिंचडं क्षत्रियुडि धर्मंनि विवरिस्ताडु.tउपनिषत्तुलु कर्मयोगान्नि चॆप्पिन नेपथ्यं चूस्ते आ कर्मलन्नी वेदंलोनू, स्मृतुल्लोनू चॆप्पिन यज्ञालु मॊदलैनवि अनि गमनिस्तां. मरि मनं ईनाडु यज्ञालु चेयडंलेदु, कनीसं नित्यं चेयाल्सिन पनुलु कूडा चेयडं लेदु. आनाडु ऒक्कॊक्क वर्गानिकि विधिंचिन पनुलु नेडु लेवु. मरि कर्मयोगं मनकु ऎला उपयोगिस्तुंदि लेदा वर्तिस्तुंदि? कर्मयोगमने कान्सॆप्टुनु प्रस्तुतं मन पनि वातावरणानिकि ऎला अन्वयिंचुकोवालि? 
tआधुनिक आचार्युलु दीन्नि इला चॆबुतारु. कर्मफलं आशिंचकुंडा ऎवरू पनिचेयरु कदा! कर्मफलानिकि नेने कारणं, नेने बाध्युण्णि अने उद्देशंतो पनिचेस्ते आ पनिलो जयापजयालु कल्गिनपुडु संतोषिंचडं लेदा बाधपडडं जरुगुतुंदि. अलाकाकुंडा नी पनिनि श्रध्धगा चेयि. ऎलांटि पनिनि चेयालि अनि ऎंपिक चेसुकुने अधिकारं लेदा छायिस् नीकुंदि. दानिफलंपै नीकु अधिकारं, अनगा नियंत्रण लेदु. दानिकि इतर परिस्थितुलु, दैवं अनुकूलिंचालि. अवि नी चेतिलो लेवु. आशिंचिन फलितं रानपुडु दान्नि नी अपजयं क्रिंद भाविंचवद्दु अंटू विवरिस्तारु. 
tमनंदरं समाजंलोनि एदो ऒक व्यवस्थलो पनिचेस्तूंटां. आ व्यवस्थकु कॊन्नि नियमालु उंटायि. अन्नि व्यवस्थलू, अंदुलो मुख्यंगा प्रभुत्व व्यवस्थलन्नी प्रजल जीवितालकू, सौकर्यालकू मुडिपडि उंटायि. नेटि राज्यांगबद्धमैन व्यवस्थ चॆप्पे पनुलु कूडा श्रीकृष्णुडु चॆप्पे वैदिककर्मलांटिदे. ई पनुल्नि ऎलांटि स्वार्थभावन लेकुंडा श्रद्धगा चेयडं कूडा कर्मयोगमे. 

अरविंदरावु गारि अनुमति तो इक्कड प्रकटिंचडं जरिगिनदि. 
तदुपरि व्यासं : देवुडॆला उंटाडु?
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నవ్య – 10 
కర్మయోగం అంటే? 
\tగత రెండు వ్యాసాల్లో కర్మ, దాని ఫలితంపై కోరిక లేకుండా పనిచేయడం అనే వాటి నేపథ్యం తెలుసుకున్నాం. ప్రస్తుతం కర్మయోగం అనే దానిని గూర్చి తెలుసుకుందాం. 
\tఫలితంపై కోరిక లేకుండా పనిచేయడానికి (నిష్కామకర్మకు) భగవద్గీతలో శ్రీకృష్ణుడు పెట్టిన పేరు కర్మయోగం. యోగం అంటే ఆసనాలు వేయడం, గాలి పీల్చుకోవడం అని సాధారణంగా మనం అనుకుంటాం. నిజానికి యోగమంటే కలయిక. ఫలానా వాడికి రాజయోగం పట్టింది, లక్ష్మీయోగం పట్టింది అంటూంటాం. లేనిదాన్ని పొందడం, పొందినదానిని రక్షించుకోవడం యోగమంటే. ఇక్కడ కర్మయోగం అంటే కర్మ అనే ఉపాయాన్ని పట్టుకొని మరొకదాన్ని సాధించడం. ఆ మరొకటి ఏమంటే అదే ఆత్మజ్ఞానం. 
\tనిష్కామకర్మ వల్ల ఒక ప్రయోజనాన్నిపై వ్యాసాల్లో చూశాం. అదేమిటంటే కర్మ యొక్క ఫలితమైన పుణ్యం లాంటివి లేకుండటం, దాని పర్యవసానాలు లేకుండా చూడటం. మరొక ప్రయోజనం కూడా ఉంది. ఫలితం కోరకుండా పని చేసే వ్యక్తి మనస్సు క్రమక్రమంగా పవిత్రంగా మారటం. దీన్నే చిత్తశుద్ధి అంటారు. ఎలాంటి లాభాపేక్ష లేకుండా మంచిపనులు చేస్తున్నప్పుడు మనస్సు ఎంత ప్రశాంతత, సంతృప్తి పొందుతుందో మనం స్వంతంగా ప్రయత్నం చేసి చూడవచ్చు. కర్మ మనస్సును శుభ్రపరచడానికి ఒక శాండల్ సోపు లాంటిదని చెపుతారు. చిత్తశుద్ధి ఉన్న వ్యక్తియే ఆత్మజ్ఞానం గురించి ఆలోచన చేయగలడని ఉపనిషత్తుల సిద్ధాంతం. 
\tకర్మయోగం గూర్చి చెబుతూ శ్రీకృష్ణుడు ‘యోగః కర్మసు కౌశలం’ అంటాడు. ‘కర్మయోగం అంటే పనులు చేయడంలో నేర్పరితనం’ అంటాడు. ఏమిటి ఆ నేర్పరితనం అంటే కర్మచేస్తూ ఉండి కూడా దాని ఫలితం నుంచి తప్పించుకోవడం. దొంగ దొంగతనం చేసి తప్పించుకున్నట్లు కాకుండా మంచి పని చేసి కూడా దాని ఫలితమైన పుణ్యాన్ని కోరకపోవడం.. ఇది ఆశ్చర్యంగా కనిపించవచ్చు. 
కర్మయోగి కానివాడు స్వంత అభ్యుదయం కోసం పనిచేస్తూ పుట్టుక, మరణం అనే చక్రంలో తిరుగుతూంటాడు. ఇతనికి మోక్షం ప్రస్తావన లేదు. అలాకాకుండా కర్మయోగి లోకం మేలు కోసం ఈశ్వరార్పణ బుద్ధితో పనిచేస్తూంటాడు. ఈశ్వరార్పణ అంటే తాను భగవంతుడి కాస్మిక్ ప్లాన్ లో ఒక భాగంగా, భగవంతుని చేతిలో ఒక పనిముట్టుగా భావిస్తూ పనిచేయడం. దీనివల్ల ప్రయోజనం చిత్తశుద్ధి. చిత్తశుద్ధి ఉన్న మనస్సు పరిశుభ్రమైన అద్దం వంటిది. ఒక అద్దంలో ఏదైనా వస్తువు ప్రతిబింబం ఏర్పడాలంటే అద్దం శుభ్రంగా ఉండాలి. అలాగే ఆత్మజ్ఞానమనే వెలుగును ప్రతిబింబించాలంటే మనస్సనే అద్దం శుభ్రంగా ఉండాలని వేదాంతం చెబుతుంది. 
పని చేయడమే దైవ పూజ. కృష్ణుడు చెప్పే మరొక సూత్రమిది. 
\tప్రతి మనిషికీ వాడి వాడి స్వభావాన్ని బట్టి సమాజం కొన్ని కర్మల్ని విధిస్తుంది. ఆ పనుల్ని చేయడమే దేవుడిని పూజించడం అని గీత చెబుతుంది. ‘స్వకర్మణా తమభ్యర్చ్య’ అంటాడు శ్రీకృష్ణుడు.మనవంతు పనిని శ్రద్ధగా చేస్తే సృష్టి నియమాల్ని, ప్రపంచధర్మాన్ని పాటించినట్లే. ఇదే ఆ సృష్టిచక్రానికీ, ప్రపంచధర్మానికీ కారణమైన శక్తినిపూజించడం అంటే. పూర్వకాలం నియమాల (work division) ప్రకారం కేవలం అధ్యయనం, అధ్యాపనం, యాగాలు చేయించడం, దానం స్వీకరించడం మొదలైనవి బ్రాహ్మణుడి ధర్మం. ప్రజల్ని రక్షించడం, ధర్మాన్ని రక్షించడం క్షత్రియుడి ధర్మం. ఇలాగే మిగతావారికి కూడా. భగవద్గీతలో అర్జునుడు తన ధర్మాన్ని వదిలి భిక్షాటనం అనే బ్రాహ్మణ ధర్మాన్ని పాటిస్తానంటాడు. ఆ సమయంలో ఆ సమయంలోఅతని ధర్మాన్ని గుర్తుచేయడమే శ్రీకృష్ణుడి పని. 
\tస్వధర్మాన్ని గురించి రాముడు కూడా చెపుతాడు. శ్రీరాముడు సీతతో పాటు అడవులకు వెళ్ళిన సమయంలో అడవుల్లో ఉన్న ఋషులు ఆయన్ను సమీపించడం, రాక్షసబాధను తొలగించమని ఆయన్ను కోరడం, ఆయన వాళ్ళ వెంబడి వెళ్ళడం, వీటన్నింటినీ చూసి సీతకు ఒక సందేహం వస్తుంది. ‘అయ్యా!మనం మీ తండ్రిగారి మాట పాటించడానికి మాత్రమే అడవులకు వచ్చాం కదా? నీవు ఎప్పుడూ నీ శస్త్రాలు పట్టుకునే ఉంటున్నావు, రాక్షసులతో యుద్ధాలు చేస్తున్నావు? ఇవన్నీ ఎందుకు? ఎప్పుడూ ఆయుధాలు దగ్గర పెట్టుకోవడం వల్ల మనిషి బుద్ధి కూడా కలుషితమవుతుంది కదా?’ అంటుంది. ఆయుధం చేతిలో ఉంటే అనవసరంగా అందరిపై దానిని ప్రయోగించే మనస్తత్త్వం వస్తుంది అంటూ ఒక కథ కూడా చెబుతుంది. అప్పుడు రాముడు ఆమెకు క్షత్రియ ధర్మాన్ని గూర్చి చెబుతూ కష్టాల్లో ఉన్నవారి కష్టాల్ని తొలగించడం క్షత్రియుడి ధర్మంఅని వివరిస్తాడు.\tఉపనిషత్తులు కర్మయోగాన్ని చెప్పిన నేపథ్యం చూస్తే ఆ కర్మలన్నీ వేదంలోనూ, స్మృతుల్లోనూ చెప్పిన యజ్ఞాలు మొదలైనవి అని గమనిస్తాం. మరి మనం ఈనాడు యజ్ఞాలు చేయడంలేదు, కనీసం నిత్యం చేయాల్సిన పనులు కూడా చేయడం లేదు. ఆనాడు ఒక్కొక్క వర్గానికి విధించిన పనులు నేడు లేవు. మరి కర్మయోగం మనకు ఎలా ఉపయోగిస్తుంది లేదా వర్తిస్తుంది? కర్మయోగమనే కాన్సెప్టును ప్రస్తుతం మన పని వాతావరణానికి ఎలా అన్వయించుకోవాలి? 
\tఆధునిక ఆచార్యులు దీన్ని ఇలా చెబుతారు. కర్మఫలం ఆశించకుండా ఎవరూ పనిచేయరు కదా! కర్మఫలానికి నేనే కారణం, నేనే బాధ్యుణ్ణి అనే ఉద్దేశంతో పనిచేస్తే ఆ పనిలో జయాపజయాలు కల్గినపుడు సంతోషించడం లేదా బాధపడడం జరుగుతుంది. అలాకాకుండా నీ పనిని శ్రధ్ధగా చేయి. ఎలాంటి పనిని చేయాలి అని ఎంపిక చేసుకునే అధికారం లేదా ఛాయిస్ నీకుంది. దానిఫలంపై నీకు అధికారం, అనగా నియంత్రణ లేదు. దానికి ఇతర పరిస్థితులు, దైవం అనుకూలించాలి. అవి నీ చేతిలో లేవు. ఆశించిన ఫలితం రానపుడు దాన్ని నీ అపజయం క్రింద భావించవద్దు అంటూ వివరిస్తారు. 
\tమనందరం సమాజంలోని ఏదో ఒక వ్యవస్థలో పనిచేస్తూంటాం. ఆ వ్యవస్థకు కొన్ని నియమాలు ఉంటాయి. అన్ని వ్యవస్థలూ, అందులో ముఖ్యంగా ప్రభుత్వ వ్యవస్థలన్నీ ప్రజల జీవితాలకూ, సౌకర్యాలకూ ముడిపడి ఉంటాయి. నేటి రాజ్యాంగబద్ధమైన వ్యవస్థ చెప్పే పనులు కూడా శ్రీకృష్ణుడు చెప్పే వైదికకర్మలాంటిదే. ఈ పనుల్ని ఎలాంటి స్వార్థభావన లేకుండా శ్రద్ధగా చేయడం కూడా కర్మయోగమే. 

అరవిందరావు గారి అనుమతి తో ఇక్కడ ప్రకటించడం జరిగినది. 
తదుపరి వ్యాసం : దేవుడెలా ఉంటాడు?



रविवार, 19 जून 2016

Amazon claim

एक गहन सोच --

दुआ तो यही है कि आपको कमसे कम वस्तुएँ ही अमेझॉनसे खरीदनी

पडें। लेकिन अब अमेझॉनका दावा है कि यदि आप वहाँसे कुछ खरीदते हैं

तो आपके कुल व्ययका एक छोटा हिस्सा किसी सामाजिक संस्थाको

दिया जायगा। वे ये भी दावा करते हैं कि उनकी दी गई लम्बी सूची में से

आप अपनी मनचाही संस्था चुन सकते हैं -- हालाँकि इस बात को शायद

ही कोई जाँच सकेगा कि वाकई में आपके पैसेसे निकलनेवाला हिस्सा

आपहीकी मनचाही संस्थाको वाकई दिया जा रहा है। बहरहाल, उनकी

भारतके लिये बनी लम्बी सूचीमें प्रायः ख्रिश्चन मिशनरियाँ ही हैं, और

कुछेक अन्य सामाजिक संस्था। तो देख लें कि आपका उत्तरदायित्व कहाँ

क्या बन रहा है।

बुधवार, 15 जून 2016

भाषा-सेतु प्रकल्पकी रूपरेखा

भाषा-सेतु प्रकल्पकी रूपरेखा
उद्देश्य -- भारतीय भाषाई ग्रंथोंके आापसी अनुवाद के लिये संगणक-आधारित सौंदर्यपूर्ण एवं गुणात्मक अनुवाद-मंचकी  स्थापना
भारतीय भाषाओंमें आपसी आदान-प्रदान तथा अनुवाद अबतक दो तरीकोंसे हो रहा है। पहला है कि कोई प्रतिभाशाली अनुवादकार व्यक्तिगत रूपसे इसे करे। यह पद्धति कई सौ वर्ष पुरानी और सकारत्मक होते हुए भी यह वेगवान नही है,  न हो सकती है। तूसरी पद्धति जो संगणक- आधारित है, इसलिये वेगवान हो सकती है, वह केवल कुछेक वर्षोंसे आई है और अभी भी अत्यंत प्रारंभिक अवस्था में है। इसकी सबसे बडी कमजोरी ये है कि अबतक इसका  प्रयास करनेवाली सभी संस्थाओंने जिसमें सर्वप्रमुख गूगल कंपनी है, उन सबने  संगणककी आज्ञावली (सॉफ्टवेअर), कार्यावली (वर्किंग प्लॅटफॉर्म) और शब्दावली (डिक्शनरी), सारे ही अंगरेजीके माध्यमसे तैयार किये हैं।  अंगरेजी भाषामें वाक्यरचना का क्रम भारतीय भाषाओंके क्रमसे नितान्त भिन्न है। भारतीय भाषाओंमें शब्दोंके अर्थ भी संदर्भानुरूप काफी अधिक बदलते हैं। तीसरी विशेषता ये है कि इन भाषाओंमें संस्कृतजन्य शब्दोंकी उपस्थितिके कारण इनका शब्दभांडार विस्तृत भी है और एक ही शब्द विभिन्न भाषाओंमें जसका तस लिया जा सकता है। 
जब एक भारतीय भाषासे दूसरी में अनुवाद करनेके लिये अंगरेजी जैसे नितान्त भिन्न माध्यमको अपनाया जाता है तब ये तीनों विशेषताएँ तथा उनसे मिलनेवाली सुविधाएँ खो जाती हैं। फिर वह अनुवाद भौण्डा और हास्यास्पद भी हो जाता है, हालाँकि इस बातको स्वीकार करना होगा कि कुछ न होनेसे तो वह स्थिति बेहतर होती है। लेकिन फिर प्रश्न उठता है कि संगणक-विश्वके सर्वाधिक कार्यकर्ता भारतीय होते हुए भी किसीको एक भारतीय भाषासे दूसरीमें अनुवाद करनेके लिये मंच बनानेकी बात क्यों न सूझी ? तो शायद उत्तरमें ये कहना होगा कि यह सूझ और सुझाव दोनोंही साहित्यकारोंकी ओरसे भी आने चाहिये थे।खैर ।
तो मैंने एक अनुमान लगानेका प्रयास किया कि ऐसा मंच बनानेका खर्चा क्या हो सकता है, समय कितना लगेगा, संगणक-क्षेत्र कितना चाहिये, साथही प्रोग्रामिंग  कौशल्य कितना चाहिये और क्या उतना कौशल्य भारतियोंके पास है। सबसे बडा प्रश्न संगणक-क्षेत्रको लेकर था । इन प्रश्नोंके उत्तरमें मेरे संगणक-ज्ञाता बेटेने बताया कि  संगणक-क्षेत्रकी चिन्ता छोडो, आजकल अत्यल्प दाममें क्लाउड-स्पेस खरीदा जा सकता है ।प्रोग्रामिंग  कौशल्य भी बहुत अधिक नही चाहिये, कोई भी अच्छा सॉफ्टवेअर इंजिनियर, जिसे प्रोग्रामिंगका २-३ वर्षका अनुभव हो, इसे आरामसे बना सकता है। यहाँ तक कि इंजिनियरिंगके अन्तिम वर्षके छात्र भी एक प्रोजेक्टके रूपमें इस कामको ले सकते हैं और यदि दो व्यक्ति टीम बनाकर काम करें तो  २ से ३ महीनेमें मंचका मूलभूत ढाँचा तैयार हो जायगा।
कामका बँटवारा तीन प्रकारसे होगा। पहला यह कि मंच बने। दूसरा यह कि उस मंचकी तथा कुल लेखन-संग्रहकी तांत्रिक देखरेख कोई तंत्रज्ञ करता रहे। तीसरा काम कि अच्छे साहित्यिक व अनुवादक इस मंचपर सुझाये गये परिच्छेदोंका अनुवाद करते चलें या अपना-अपना अनुवाद इसपर रखते चलें ताकि संगणकीय प्रणाली उस-उस अनुवाद-विधाको याद रखे और सीखती चले ताकि अगले बार उसीको सुझाव के रूपमें प्रस्तुत किया जा सके। पर इनसे ऊपर जो प्रमुख महत्वका काम है, वह ये कि अच्छे साहित्यकारोंकी एक टीम प्रत्येक अनुवाद को देखकर और परखकर उसकी गुणात्मक ग्राह्यताकी पडताल करे। यह टीम अलग-अलग भाषाओंके लिये अलग-अलग होगी।
काम जैसे जैसे आगे बढेगा, लेखन-संग्रहका आकार बढता चलेगा और देखरेख करनेवाले तंत्रज्ञोंकी संख्या बढानी पडेगी। इसमें एक से दो वर्ष लग सकते हैं, तबतक इस मद्देपर खर्च अधिक नही है। 
संगणकके पास अपना एक शब्दभंडार तो होगा ही, और  उससे भी अधिक आवश्यक उसकं पास समानार्थी शब्द, उनकी छटाएँ और नादात्मक विवेचन भी रखना पडेगा। इसी तरह वाक्योंके भी प्रकारान्तर संगणकके वाक्य-भंडार में रखने पडेंगे।
इस दिशामें आज गूगल पर जो प्रयास हो रहे हैं उनपर भी एक नजर दौडानी होगी। गूगल ट्रान्सलेशन टूलकिटके इनपुट पन्नेका चित्र यों है -- 


  
इसमें  ऍड कण्टेण्ट टू इनपुट में हिंदी परिच्छेद जोडा जा सकता है और व्हिच लँग्वेज टू ट्रान्सलेटमें मराठी लिखा जा सकता है। लेकिन  आजकी तारीखमें यह अनुवाद कुछ इस प्रकार होता है --
मूल हिंदी परिच्छेद --
  श्री मोदी देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने दो-तीन सपने देश के सम्मुख रख्खे -- मेक इन इंडिया काडिजीटल भारत का और स्मार्ट सिटी का। इन तीनों सपनों का आपसी जुडाव मैं इस रुप मे देखती हूँ की, ये तीनों मानो बिजली के पंख के तीन पात हैं, जो एक केंद्र से गती पाते हैं और उसका चक्कर लगाते हैं। वह एक सूत्र जो इन तीनों सपनों को साकार करने मे गती दे सकता है वह है  संगणक पर बाल-सुलभ पद्धती से टंकलेखन का कौशल्य।
अनुवादित मराठी --
         श्री मोदी देश पंतप्रधान विष मग ते दोन - तीन स्वप्नांच्या देश करण्यापूर्वी Rkrke - करा या भारत डिजिटल ऑफ भारत ऑफ आणि स्मार्ट शहर या तीन स्वप्नांच्या ऑफ म्युच्युअल विवाह मी वैशिष्ट्यीकृत जोडा पहा एम या तीन म्हणून विजा हलकीफुलकी तीन ड्रॉप कोणत्या एक केंद्र पासून गती शोधा आहेत आणि त्याच्या चक्कर चार्जिंग आहेत. तो एक थ्रेड त्या या तीन स्वप्नांच्या करण्यासाठी लक्षात करण्यासाठी जोडा गती देणे कॅन आहे तो आहे   संगणक रोजी केस - प्रवेश पद्धती पासून Tnklekn ऑफ कौशल्य.

इस अनुवादका गुणात्मक मूल्य तो जो है सो है परन्तु चिह्नित शब्दोंसे साफ झलकता है कि अनुवाद व्हाया अंगरेजी हुआ है औऱ उसमें सुघारकी गति बहुत धीमी होगी। हालांकि इसमें ""यू इनव्हाइट युअर फ्रेंड्स फॉर बेटर ट्रान्सलेशन"" का ऑप्शन भी है फिर भी जबतक सुधारोंको अंगरेजी वाक्यविन्यासोंका संदर्भ लेना पड रहा है तबतक सुधारकी गति मंद ही रहेगी और निकट भविष्यमें भारतीय भाषाओंके आपसी अनुवाद के लिये उसका कोई खास उपयोग नही होगा।
अतः आवश्यक है कि इस दिशामें अपने देशमें ही काम आरंभ हो। इसके लिये कौशलम् न्यासके माध्यमसे ऐसा प्रकल्प हाथमें लेनेका इरादा है। आजकी तारीख में बाकी सारी सुविधा-असुविधाका विचार कर यह तय पाया है कि आरंभिक मंच बनानेवाले संगणक इंजिनियर (दो या तीन) पुणेसे ही लेने पडेंगे -- क्योंकि मेरा वास्तव्य वहींंं रहेगा )। उनके यथोचित मानधनकी व्यवस्था कौशलम् न्यासके द्वारा की जायेगी। गूगलकीही भाँति एक मंच बन जानेपर अनुवादका कार्य करनेके लिये कई लोग इसमें जुडें और स्वेच्छासे सहायता करें यह अपेक्षा होगी -- लेकिन अनुवााद सौंदर्यपूर्ण और गुणात्मक हो इसके लिये उस उस भाषाके प्रथितयश साहित्यकारोंकी सहायता लेनी होगी। यह प्रयास भी कौशलम् न्यास की ओरसे किया जायगा।
फिलहाल यह टिप्पणी मैं कई लोगोंतक पहुँचा रही हूँ -- और अनुरोध है कि आप अपना मत शंका सुझाव आदि दें। जो संगणक-इंजिनियर इस कार्यको करनेका सामर्थ्य रखते हैं उनसे अनुरोध है कि आगे आयें औऱ इस राष्ट्रनि्र्माणके काम में अपना योगदान दें।











मंगलवार, 14 जून 2016

काही खास अनुवादित साहित्त्याच्या विविध links ,

काही खास अनुवादित साहित्त्याच्या विविध links , 
गीत, समश्लोकी , छंदानुवाद , ओवीबद्ध रुद्र , पद्यानुवाद , अभंग मनोबोध , 
नरसिंह लीलामृत ( विशेष )
ह्या व्यतिरिक्त आपल्याकडे काही अनुवादित साहित्त्याची माहिती असेल तर मला पाठवावी. 

http://satsangdhara.net/bhp/bhsk01.htm






इथे आणखीही ज्ञानेश्वरीचे अनुवाद पाहायला मिळतात , त्यातील मला आवडलेले हे आहेत